काव्यांजलि उदय (Kāvyāṃjali Udaya)
जगराम (Jagarama Simha) सिह
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Beschreibung
चैतन्य युक्त समाज जब स्वयं से जागकर उठने का प्रयत्न रूपी अनुष्ठान प्रारम्भ करता है तो प्रथमत: उसके सन्मुख परिलक्षित परिजन - पुरजन देशकाल परिस्थिति की अच्छी - बुरी झलक आँखों के सन्मुख प्रतिबिंबित होती है। उसी तीव्र उत्कण्ठा में अपनों की खोज करता, बारी - बारी से ममता भरी दृष्टि से निहारता, नूतन दिवस का स्वागत करता और इर्श्वर को धन्यवाद देकर जीवन को मंगल सन्मुख पर अग्रसर होने का नम्र निवेदन करता है। फलत: निष्काम स्तुति में वेदना, संवेदना, प्रेरणा, सन्देश आदि की भाव - भूमिका शब्दरूप लेकर साहित्य का अभिन्न अंग बन और आत्मविभोर होकर मानव मात्र के कल्याण के ताने - बाने के बुनने में निमग्न हो समाहित होती है। यही उदात्तव भाव जो राष्ट्र को समर्पित है। उसी को काव्यांजलि उदय रूपी हार में शब्दरूपी मोतियों को पिरोने का प्रयत्न मात्र है। प्रभु इस मंगल अभिधान को स्वीकार कर अभय आशीर्वाद प्रदान करें, यही निवेदन है।